मुनि पद कमल नाइ करि सीसा । चले बनहि सुर नर मुनि ईसा ॥
आगें राम अनुज पुनि पाछें । मुनि बर बेष बने अति काछें ॥
उभय बीच श्री सोहइ कैसी । ब्रह्म जीव बिच माया जैसी ॥
सरिता बन गिरि अवघट घाटा । पति पहिचानि देहिं बर बाटा ॥
जहँ जहँ जाहिं देव रघुराया । करहिं मेघ तहँ तहँ नभ छाया ॥
भावार्थ :- मुनिके चरणकमलोंमें सिर नवाकर देवता, मनुष्य और मुनियोंके स्वामी श्रीरामजी वनको चले । आगे भगवान श्रीराम हैं और उनके पीछे छोटे भाई लक्ष्मण जति हैं । दोनों ही मुनियोंका सुंदर वेष बनाए अत्यन्त सुशोभित हैं I दोनोंके बीचमें देवी सीता कैसी सुशोभित हैं, जैसे ब्रह्म और जीवके बीच माया हो I नदी, वन, पर्वत और दुर्गम घाटियाँ, सभी अपने स्वामीको पहचानकर सुंदर रास्ता दे देते हैं I जहाँ-जहाँ देव श्रीरघुनाथजी जाते हैं, वहाँ-वहाँ बादल आकाशमें छाया करते जाते हैं ।
आगें राम अनुज पुनि पाछें । मुनि बर बेष बने अति काछें ॥
उभय बीच श्री सोहइ कैसी । ब्रह्म जीव बिच माया जैसी ॥
सरिता बन गिरि अवघट घाटा । पति पहिचानि देहिं बर बाटा ॥
जहँ जहँ जाहिं देव रघुराया । करहिं मेघ तहँ तहँ नभ छाया ॥
भावार्थ :- मुनिके चरणकमलोंमें सिर नवाकर देवता, मनुष्य और मुनियोंके स्वामी श्रीरामजी वनको चले । आगे भगवान श्रीराम हैं और उनके पीछे छोटे भाई लक्ष्मण जति हैं । दोनों ही मुनियोंका सुंदर वेष बनाए अत्यन्त सुशोभित हैं I दोनोंके बीचमें देवी सीता कैसी सुशोभित हैं, जैसे ब्रह्म और जीवके बीच माया हो I नदी, वन, पर्वत और दुर्गम घाटियाँ, सभी अपने स्वामीको पहचानकर सुंदर रास्ता दे देते हैं I जहाँ-जहाँ देव श्रीरघुनाथजी जाते हैं, वहाँ-वहाँ बादल आकाशमें छाया करते जाते हैं ।
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