जयति मर्कटाधीश, मृगराज-विक्रम, महादेव, मुद-मंगलालय, कपाली I
मोह-मद-क्रोध-कामादि-खल-संकुला, घोर संसार-निशि किरणमाली II १ II
भावार्थ :- हे रुद्रावतार हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो I तुम बंदरोंके राजा, सिंहके समान पराक्रमी, देवताओंमें श्रेष्ठ, आनंद और कल्याणके स्थान तथा कपालधारी शिवजीके अवतार हो I मोह, मद, क्रोध, काम आदि दुष्टोंसे व्याप्त घोर संसाररूपी अन्धकारमयी रात्रिके नाश करनेवाले तुम साक्षात् सूर्य हो II १ II
मोह-मद-क्रोध-कामादि-खल-संकुला, घोर संसार-निशि किरणमाली II १ II
भावार्थ :- हे रुद्रावतार हनुमानजी ! तुम्हारी जय हो I तुम बंदरोंके राजा, सिंहके समान पराक्रमी, देवताओंमें श्रेष्ठ, आनंद और कल्याणके स्थान तथा कपालधारी शिवजीके अवतार हो I मोह, मद, क्रोध, काम आदि दुष्टोंसे व्याप्त घोर संसाररूपी अन्धकारमयी रात्रिके नाश करनेवाले तुम साक्षात् सूर्य हो II १ II
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